Monday, September 19, 2011

ऐ मेरी जुबां मुझे आज कुछ कहने दे

बस मुझे आज न चुप रहने दे
ऐ मेरी जुबां मुझे आज कुछ कहने दे
मैंने आज तक कुछ नहीं माँगा
तुने जो कहा वही मैंने माना
तेरी हर बात को मैंने पत्थर की लकीर समझा
तेरे हर इक शब्द को खुदा की मर्ज़ी जाना
कुछ गलत भी हुआ और हुआ कुछ सही भी
कुछ ने तारीफ की तो कुछ्ने दी गाली भी
मै सहता रहा सब मौन रहकर
अपने अरमां अपने ही मै दबाकर
चाहकर भी न चाहा जो चाहता था मै
बस इस कारण के तूने न चाहा वो
पर आज मुझे नज़र आया है कोई
पहली दफा दिल में समाया है कोई
बस इक बार मुझे प्यार की कश्ती में बहने दे
ऐ मेरी जुबां मुझे आज कुछ कहने दे


हरिओम
१९/०९/२०११

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